Free Verse Poem (मुक्तछंद कविता)
सोयी थी अपने पानी में,
उसके दर्पण पर –
बादल का वस्त्र पड़ा था।
मैंने उसे नहीं जगाया,
दबे पाँव घर वापस आया।
*** केदारनाथ अग्रवाल ***
Soyi thi apane paani mein,
Usake darpan Par –
Badal ka vastr pada tha.
Maine use nahin jagaya,
Dabe paav ghar vapas aaya.
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